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خط ۱۳۷: |
خط ۱۳۷: |
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| ==جایگاه روزه در ادبیات== | | ==جایگاه روزه در ادبیات== |
| {{شعر۲ | | {{شعر جدید |
| |خط اول=[[حافظ شیرازی]] | | | جداکننده = \\ |
| |بیا که ترک فلک خوان روزه غارت کرد|هلال عید به دور قدح اشارت کرد | | |عنوان =[[حافظ شیرازی]] |
| |ثواب روزه و حج قبول آن کس برد|که خاک میکده عشق را زیارت کرد<ref>دیوان حافظ، نشر جیحون، ۱۳۸۷ش، ص۱۳۱.</ref>}}
| | | متن = بیا که ترک فلک خوان روزه غارت کرد\\هلال عید به دور قدح اشارت کرد |
| | ثواب روزه و حج قبول آن کس برد\\که خاک میکده عشق را زیارت کرد<ref>دیوان حافظ، نشر جیحون، ۱۳۸۷ش، ص۱۳۱.</ref>}} |
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| {{شعر۲ | | {{شعر جدید |
| |خط اول=[[ناصر خسرو قبادیانی |ناصرخسرو]] | | | جداکننده = \\ |
| |چون روزه ندانی که چه چیز است چه سود است|بیهوده همه روزه تو را بودن ناهار؟ | | |عنوان =[[ناصر خسرو قبادیانی |ناصرخسرو]] |
| | | متن = چون روزه ندانی که چه چیز است چه سود است\\بیهوده همه روزه تو را بودن ناهار؟ |
| <ref>[https://ganjoor.net/naserkhosro/divann/ghaside-naser/sh99 ناصر خسرو]، سایت گنجور.</ref>}} | | <ref>[https://ganjoor.net/naserkhosro/divann/ghaside-naser/sh99 ناصر خسرو]، سایت گنجور.</ref>}} |
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| {{شعر۲ | | {{شعر جدید |
| |خط اول=[[ابوالقاسم فردوسی |فردوسی]] | | | جداکننده = \\ |
| |چنان بر دل هر کسی بود دوست|نماز شب و روزه آیین اوست | | |عنوان =[[ابوالقاسم فردوسی |فردوسی]] |
| | | متن = چنان بر دل هر کسی بود دوست\\نماز شب و روزه آیین اوست |
| <ref>[https://ganjoor.net/ferdousi/shahname/tahmoores/sh1 فردوسی]، سایت گنجور.</ref>}} | | <ref>[https://ganjoor.net/ferdousi/shahname/tahmoores/sh1 فردوسی]، سایت گنجور.</ref>}} |
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